Tuesday, May 14, 2019

काश! की मां-बाप कभी न मरते...

एक बात कहता हूं तुमसे...
सुनोगे...
वक्त नहीं होगा तुम्हारे पास...
हां! समझ सकता हूं सबकुछ है तुम्हारे पास
बस एक वक्त को छोड़कर...
मतलब नहीं सुनोगे मेरे मन की उठा-पटक
एक काम करता हूं फिर...
सोचने का... बस सोचते रहने का
ये मुश्किल नहीं होगा मेरे लिए...
हां इतना जरूर है कि मन की उठा-पटक
कभी खत्म नहीं होगी... जबतक सांसों में फंसा रहूंगा
सोचूंगा कि तुमने पहला कदम ज़मीन पर जब रखा था...
लड़खड़ाए थे...
और तुम्हारे गिरने और चोट लगने के डर से सहमा था मैं...
घबराया था... और झट तुम्हारी नन्हीं अंगुलियों को पकड़ा था...
मैं जीवन और जीवन की राह पर चलने के संतुलन को समझता हूं...
लेकिन फिर भी गिरने और चोट लगने के डर से सहमा रहता हूं
सोचूंगा कि आज मेरे पिता मेरे पास होते तो झट थाम लेते वो
मेरे अधमरे शरीर के अस्थीपंजर को... इससे मेरी हिम्मत बढ़ जाती...
लेकिन कौन है इस जग में अमर...
काश! की कभी मां-बाप कभी नहीं मरते किसी के...
तो हमसे कभी बचपन रूठता ही नहीं... लगी शर्त...
एक काम करता हूं फिर...
सोचने का... बस सोचते रहने का
ये मुश्किल नहीं होगा मेरे लिए...
हां इतना जरूर है कि मन की उठा-पटक
कभी खत्म नहीं होगी... जबतक सांसों में फंसा रहूंगा